Sunday, July 16, 2017



रस्ता तुझा मंजिलही तू
तू स्वप्नही तू जागही
अस्ति तुझी जग व्यापुनि
भेटी दुराव्या पार जी

हाती असो माती कधी
विखरो नभी वा तारका
तू कल्पना तू सत्यता
अवकाश तू, तु वसुंधरा

सौंदर्य जे आहे इथे
तुझियामुळे आहे जणू
तू अंतही आरंभ तू
कारण ही तू सीमाही तू

अनुवाद - विभावरी बिडवे
मूळ कविता - अमृता प्रीतम

"तुम्हारा अस्तित्व हर फासले से बेनियाज है |
तुम्हारा अस्तित्व राह भी है, मंजिल भी
हकीकत की तरह,
धरती पर एक जगह पर भी खड़ा है,
और कल्पना की तरह,
हर जगह हर पसारे में भी...
इस दुनियामें
मुझे जहां भी जो कुछ अच्छा लग रहा है,
यह सब तुम्हारे अस्तित्व के कारण है...
तुम्हारा अस्तित्व इसकी पृष्ठभूमि है,
तुम्हारा अस्तित्व इसका क्षितिज है..."

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