Monday, February 6, 2017



सुखेनैव तो रणांगणावर
अपुल्या आयुष्याची वणवण

सुरक्षीतशा भिंतींमागे
लिहीली जाते अवघी तणतण

डोक्याला तो झाला कायम
दिसली नाही कधीच कणकण

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जखम वाहिली इतकी भळभळ
केली गेली केवळ हळहळ

विस्फोटाच्या कवितेवरती
आधि वाहवा नंतर कळकळ

फांदीवरुनी गेले पिल्लू
पानांची थांबेना सळसळ

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