रस्ता तुझा मंजिलही तू
तू स्वप्नही तू जागही अस्ति तुझी जग व्यापुनि भेटी दुराव्या पार जी हाती असो माती कधी विखरो नभी वा तारका तू कल्पना तू सत्यता अवकाश तू, तु वसुंधरा सौंदर्य जे आहे इथे तुझियामुळे आहे जणू तू अंतही आरंभ तू कारण ही तू सीमाही तू अनुवाद - विभावरी बिडवे मूळ कविता - अमृता प्रीतम "तुम्हारा अस्तित्व हर फासले से बेनियाज है | तुम्हारा अस्तित्व राह भी है, मंजिल भी हकीकत की तरह, धरती पर एक जगह पर भी खड़ा है, और कल्पना की तरह, हर जगह हर पसारे में भी... इस दुनियामें मुझे जहां भी जो कुछ अच्छा लग रहा है, यह सब तुम्हारे अस्तित्व के कारण है... तुम्हारा अस्तित्व इसकी पृष्ठभूमि है, तुम्हारा अस्तित्व इसका क्षितिज है..." |
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Sunday, July 16, 2017
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