सुखेनैव तो रणांगणावर
अपुल्या आयुष्याची वणवण सुरक्षीतशा भिंतींमागे लिहीली जाते अवघी तणतण डोक्याला तो झाला कायम दिसली नाही कधीच कणकण ---------------------------------------- ---------------------------------------- जखम वाहिली इतकी भळभळ केली गेली केवळ हळहळ विस्फोटाच्या कवितेवरती आधि वाहवा नंतर कळकळ फांदीवरुनी गेले पिल्लू पानांची थांबेना सळसळ |
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